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अनुभूति में जगदीश पंकज की रचनाएँ

नये गीतों में- 
उकेरो हवा में अक्षर
धूप आगे बढ़ गयी

पोंछ दिया मैलापन
मत कहो
हम टँगी कंदील के बुझते दिये

अंजुमन में-
आज अपना दर्द
कुछ घटना कुछ क्षण
लो बोझ आसमान का
वक्त को कुछ और
शब्द जल जाएँगे

गीतों में-
कबूतर लौटकर नभ से
गीत है वह

टूटते नक्षत्र सा जीवन
मुद्राएँ बदल-बदलकर
सब कुछ नकार दो

 

गीत है वह

गीत है वह जो सदा आखें उठाकर
है जहाँ पर भी समय से
जूझता है

अर्ध सत्यों
के निकल कर दायरों से
जिन्दगी की जो व्यथा को छू रहा है
पद्य की जिस खुरदरी, झुलसी त्वचा से
त्रासदी का रस
निचुड़ कर चू रहा है

गीत है वह जो कड़ी अनुभूतियों की
आँच से अनबुझ पहेली
बूझता है

कसमसाती चेतना की,
वेदना का प्रस्फुटन जिसमें गढ़ा है
गीत है वह जो सदा उद्दाम लहरों सी
निरंतरता लिये
आगे बढ़ा है

गीत है वह जो सहारा बन उभरता
जिस समय कोई न अपना
सूझता है

१६ सितंबर २०१३

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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