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अनुभूति में जय चक्रवर्ती की रचनाएँ

नये गीतों में-
काम आता ही नहीं कुछ
तुम भी बदलो पापा
मेरे गाँव में
रहे जब तक पिता
सच सच बताना

गीतों में-
कभी किसी दिन घर भी आओ
किसकी कौन सुने
खड़ा हूँ बाजार में
खत नहीं आया
चलो रैली में
पिता

बना रहे घर जैसा घर
महँगाई भत्ता
ये दिल्ली है
राजा जी हैं धन्य

दोहों में-
राजनीति के दोहे

 

मेरे गाँव में

खुल गया है बंधु!
शॉपिंग–मॉल
मेरे गाँव में

लगी सजने कोक-पेप्सी
ब्रेड-बर्गर और
पिज्जा की दुकानें
आँख में
पसरे हुए हैं स्वप्न
मायावी प्रगति का छत्र ताने

आधुनिकता का
बिछा है जाल
मेरे गाँव में

हँस रहे हैं पत्थरों के वन
सिवानों और
खेतों के बदन पर
ढूँढती दर
सुबह से शाम गौरैया
वही घर, वही छप्पर
हैं हताहत
कुएँ-पोखर-ताल
मेरे गाँव में

उत्सवों की पीठ पर
बैठे हुए हैं
बुफ़े-डीजे-और डिस्को
स्नेह-स्वागत
प्यार या मनुहार वाले
स्वर यहाँ अब याद किसको
मौन है अब
गाँव की चौपाल
मेरे गाँव में

११ मई २०१५

 

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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