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अनुभूति में जयकृष्ण राय तुषार की रचनाएँ-

गीतों में-
चेहरा तुम्हारा
पिता
धूप खिलेगी
फोन पर बातें न करना
बादलों के बीच में रस्ते
लोग हुए वेताल से

 

पिता

पिता!
घर की खिड़कियों
दालान में रहना।
यज्ञ की
आहुति, कथा के
पान में रहना।

जब कभी
माँ को
तुम्हारी याद आयेगी,
अर्घ्य
देगी तुम्हें
तुम पर जल चढ़ायेगी,
और तुम भी
देवता
भगवान में रहना।

अब नहीं
आराम कुर्सी,
बस कथाओं में रहोगे,
प्यार से
छूकर हमारा मन
समीरन में बहोगे,
फूल की
इन खुशबुओं में
लान में रहना।

माँ!
हुई जोगन
तुम्हारा चित्र मढ़ती है,
भागवत के
पृष्ठ सा वह
तुम्हें पढ़ती है,
स्वर्ग में
तुम भी उसी के
ध्यान में रहना।

चाँद-तारों से
निकलकर
कभी तो आना,
हम अगर
भटकें, हमें फिर
राह दिखलाना,
सात सुर में
बाँसुरी की
तान में रहना।

पिता!
हमने गलतियाँ की हैं
क्षमा करना,
हमें दे
आशीष
घर धन-धान्य से भरना,
तुम
हमारे गीत में
ईमान में रहना।

६ दिसंबर २०१०

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