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अनुभूति में कल्पना मनोरमा 'कल्प' की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
कविता
तुम्हारे बाद
तुलसी के बीज
घोंसले
लौटती हूँ

दोहों में-
गंगा की अवतार माँ

गीतों में-
दीपक को तम में
बादल आया गाँव में
बोल दिये कानों में
मत बाँधो दरिया का पानी
मन से मन का मिलना

संकलन में-
देवदार- देवदार के झरोखे से
रक्षाबंधन- रीत प्रीत की
शिरीष- वन शिरीष मुस्काए

शुभ दीपावली- दीप बहारों के
होली है- चलो वसंत मनाएँ

 

कविता

सुनो! कहीं जा रहे हो?
हाँ! जा तो रहा हूँ
तो ज़रा कविता लेते आना
थोड़ी-सी ही बची है
वो कहते हैं न!
चीजों का तारतम्य टूटना
अच्छा नहीं होता

वे मुस्कुराये और बोले
तुम कमाल की जमाखोर हो
तुम्हारा कम भी
होता है ज्यादा से भी बहुत ज्यादा
ठीक से देखकर
बताओ न !
कहते हुए
उन्होंने दरवाज़ा खोला ही था
कि-एक कविता

झाँकने लगी खिड़की से
एक माँ की तस्वीर के पीछे से
एक बच्चों के
गुसमुस पड़े कपड़ों,
किताबों के मुड़े पृष्ठों
टूटे -फूटे
खिलौने के बीच से

एक ने तो हद्द ही कर दी
न जाने कहाँ से
छम्म से गिरी आकर
ठीक मेरे सामने
मैं सकुचाई ,वे पुनः मुस्कुराए
फिर एक कविता
बन गई धीरे से
हमारे बीच

सितंबर २०२२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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