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अनुभूति में कौशलेन्द्र की रचनाएँ-

गीतों में-
डूब गए आँखों में
हवा में
हिल उठा हू

 

  हवा में

हवा में
उड़ती चिरायंध
नाक में रुमाल ठूँसे
बेतहाशा-
भागते सब
कौन रुककर बात पूँछे,

पारदर्शी वस्त्र में हैं
सजे-सँवरे लोग नंगे,
मूँदकर
मरजाद को जो ढो रहे हैं वही कंधे,
भीड़ में
कुछ नहीं दिखता
कौन सच हैं कौन झूठे

जी रहे रिश्ते
जहाँ तुमसे हमारा वास्ता है,
शेष अपनी मंज़िलें हैं
और अपना रास्ता है,
एक पल
खुलती हथेली
दूसरे पल तने घूँसे।

७ दिसंबर २००९

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