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अनुभूति में कृष्ण बक्षी की रचनाएँ-

गीतों में-
कल की तरह
घर के बारे में
पिता हमारे
ये बिजली के तार
सपना

 

ये बिजली के तार

ये बिजली के तार, इन्हें
मत छूना बेटा।

रिश्ते, जैसे दीवारों पर
नई पुताई।
करनी पड़ती है जिनकी
हर क्षण भरपाई
खटना पड़ता है, पल पल ही
इनके आगे।
टूटें तो सचमुच ही लगते
कच्चे धागे।

पानी से धुल जाता-
जैसे चूना बेटा।

अच्छे-खासे दिन, जैसे
सपनों का आना।
पता नहीं चल पाता
इनका होकर जाना।
बुरा वक़्त भर जाता है
बेजा रुसवाई।
अंदर तक बिछ जाती है
आकर तन्हाई।

अंग-अंग लगता है-
बिलकुल सूना बेटा।

जिन का हो अनुमान न
वे बातें हो जायें।
क़दम-क़दम पर घट जायें
ढेरों घटनाएँ।
वैसे ही तिनकों के, जोड़-
तोड़ में सारा।
सच पूछो तो, जीवन ही
कट गया हमारा।

दर्द और हो जाता-
सचमुच दूना बेटा।

१ मई २०१७

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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