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अनुभूति में कृष्णानंद कृष्ण की रचनाएँ—

नया गीत—
जाने किसकी नज़र लगी

गीतों में—
गुनगुनाना उनका
चाँद उतर आया है
पूत गया परदेस
बदली कहाँ गाँव की माटी
सर्दियों के दिन
सपनों में जीना
हमारे गाँव में

 

बदली कहाँ गाँव की माटी

बदली कहाँ गाँव की माटी
बदल गए हैं लोग
हमारे गाँव में।

भाईचारा अपनेपन का
लोप हो गया
लगता है जैसे ईस्सर का
कोप हो गया
ठंडी पड़ी अलावें जैसे
मना रही हों सोग
हमारे गाँव में।

गली-गली बँट गई
बँटे रिश्ते सारे
खोज-खोज कर मानवता को
पग-पग हारे
अपनी करनी का फल ही तो
लोग रहे हैं भोग
हमारे गाँव में।

बापू की आँखों में
सन्नाटा गहरा है
हर होठों पर कैसा
आतंकी पहरा है
कुशल-क्षेम पूछे ना कोई
कहे ना उपमा जोग
हमारे गाँव में।

1 दिसंबर 2006

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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