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अनुभूति में मधु भारतीय की रचनाएँ-

गीतों में-
कुहरे ढँकी किरण वधु
तुम नहीं आए
दुग्ध धवल केशों में
हरे भरे तट छोड़

 

 

 

कुहरे ढँकी किरण वधु

कुहरे ढकी किरण-वधु को
लगती नागिनी-सी रातें!

संवेदना जड़े कंगनों से
खनक नहीं अब मिलती
आम्र डालियाँ सिर धुनतीं
मंजरी नहीं क्‍यों खिलती?

नीम सरीखी कड़वी लगतीं
महुआ-सी बातें!

रिश्‍तों के पुल ऐसे टूटे
पैर न बढ़ते आगे
थका हुआ मन शंकित हो
वट-छाया से भी भागे

मन से मन को कहां जोड़तीं
अब रेशमी कनातें?

सुख संसाधन जुटा सके
वह निकली घर से बाहर
लौटी तो तम ही तम, बच्‍चे
परिजन थे सौदागर

अपनों को ही डस लेती हैं
महाभारती घातें!

कण-भर सुख की शक्ति संजोकर
गिरि-सा दुख सह लेते
पाप-पुण्‍य की मर्यादा में
गंगा-से बह लेते

अहं-अग्नि में भस्‍म हो गईं
प्रेम-पगी सौगातें!

२६ जुलाई २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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