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अनुभूति में डॉ. मनोहर अभय की रचनाएँ-

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गीतों में-
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आश्वासनों के मंत्र
क्वारी गली
धूप के बिस्तर
सप्तवर्णी मेघ

 

क्वारी गली

किंकणि कहूँ या तोड़ियाँ
खनखनाती चूड़ियाँ
गंध जैसे सिक रही हों
श्रावणी में पूड़ियाँ
द्वार देहरी फुदकती
खमोश पानी में उछलती
सोनमछली

खेलती हँसती हँसाती
रामजी का घर सजाती
घन्टी कभी थाली बजाती
एक दिन गायब हुई
सिर कटी गुड़िया मिली
आधी जली

सियानी नहीं कमसिन रही
सँवरती हर दिन रही
गाँव के बेकार थे
साथ पहरेदार थे
क्या किया कैसे हुआ
चौक पर दुहिता जली
अच्छी भली

शोर था पुरजोर था
हुज्जूम चारों ओर था
झंडे उठे डंडे चले
साथ में कैंडिल जले
सर पटक कर रह गए
रोती रही क्वारी गली   

९ फरवरी २०१५

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