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अनुभूति में मयंक श्रीवास्तव की रचनाएँ-

गीतों में-
आग लगती जा रही है
एक अरसे बाद
नदी
पता नहीं है
मेरे गाँव घिरे ये बादल

 

मेरे गाँव घिरे ये बादल
 
मेरे गाँव घिरे ये बादल
जाने कहाँ-कहाँ बरसेंगे

अल्हड़पन लेकर पछुआ का
घिर आयीं निर्दयी घटाएँ
दूर -दूर तक फ़ैल गयीं हैं
घाटी की सुरमई जटाएँ
ऐसे मदमाते मौसम में
जाने कौन -कौन तरसेंगे

मछुआरिन की मस्ती लेकर
मेघों की चल पड़ी कतारें
कहीं बरसने की तैयारी
कहीं -कहीं गिर पड़ी फुहारें
कितने का तो दर्द हरेंगे
कितनों को पीड़ा परसेंगे

मेरे गाँव अभागिन संध्या
रोज-रोज रह जाती प्यासी
जिसके लिए जलाए दीपक
उसका ही उपहार उदासी
जाने किसका हृदय दुखेगा
जाने कौन-कौन हरषेगें

७ नवंबर २०११

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