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अनुभूति में नीलम श्रीवास्तव की रचनाएँ

गीतों में-
गाँठ सवालों की

गुमसुम गौरैया
ठंडा पानी
ठहरी हुई नदी
ढूँढ रहे इस घर में 



 

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ठहरी हुई नदी

बूँद-बूँद विषकुंड हो गई
ठहरी हुई नदी।

अपनी दुविधा
दिशाहीनता
किससे नदी कहे?
कौन भगीरथ
जिसकी उँगली थामे
और बहे?

रोज़ कुटिल कोलाहल
सुन-सुन
बहरी हुई नदी।

बँधुआ समय
कूट पुरुषों की
भाषा बोल रहा,
इत्र लगे हाथों से
जल में गंधक घोल रहा!

अपनी ही राहों में
घुल-घुल
गहरी हुई नदी।

९ नवंबर २००९

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