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अनुभूति में नीरजा द्विवेदी  की रचनाएँ-

गीतों में-
उठो पथिक
ऐ मेरे प्राण बता
तार हिय के छेड़ो न तुम
निशा आगमन
बलिदानी आत्माओं की पीड़ा
विरहिन लगती प्रकृति प्रिया
हे सखि
 

  'विरहिन लगती प्रकृति प्रिया`

विरहिन सी लगती प्रकृति प्रिया।
जाने किसने यह त्रास दिया।

प्रात: उठते ही रोती है।
आँसू लगते ओस सदृश।
उठती जो वाष्प सरोवर से
लगती इसकी आह विवश।
यह किसे दिखाए फटा हिया?
विरहिन-सी लगती प्रकृति प्रिया।

मध्याह्न ताप में दहती है।
मिलता न चैन इसको पल भर।
तन से गिरते जो स्वेदबिन्दु,
जलता शरीर जलता बिस्तर।
मिलता न कहीं भी ठौर ठिया।
विरहिन-सी लगती प्रकृति प्रिया।

जब साँझ चतुर्दिक घिरती है,
अंधकार में खो जाती यह।
तारों से अश्रु चमकते हैं,
जागी आँखों से सो जाती यह।
जाने किसने यह त्रास दिया
विरहिन-सी लगती प्रकृति प्रिया।

२ फरवरी २००९

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