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अनुभूति में निर्मल शुक्ल की रचनाएँ-

गीतों में-
आँधियाँ आने को हैं
ऊँचे झब्बेवाली बुलबुल
छोटा है आकाश
दूषित हुआ विधान
 

 

दूषित हुआ विधान

बीस सदी के पार हुए हम
फिर भी है अनजान
इस पृथ्‍वी ने पहन लिये क्‍यों
विष डूबे परिधान

धुआँ मन्‍त्र सा उगल रही है
चिमनी पीकर आग
भटक गया है चौराहे पर
प्राणवायु का राग
रही खाँसती ऋतुएँ, मौसम
दमा करे हलकान

पेड़ कटे क्‍या, सपने टूटे
जंगल हो गये रेत
विकृतियों से बंजर हो गये
बाग, बावड़ी, खेत
उजड़ गयी बस्‍ती पंखों की
थकने लगी उड़ान

धीरे-धीरे बादल, अम्‍बर
सबने खींचे हाथ
सूख गया अनुराग नदी का
जलचर हुये अनाथ
चढ़े घाम तो गलियारों की
सूखे हलक जबान

परजीवी बन चुका प्रदूषण
कैसे पाँव पड़े
शहरों से तो फिर भी अच्‍छे
आदिम गाँव बड़े
दोष नहीं कुछ कंकरीट का
दूषित हुआ विधान

२३ मई २०११

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