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अनुभूति में निर्मला साधना की रचनाएँ-

गीतों में-
अतीत के ताने-बाने
दोष कहाँ संयम का इसमें
पूछ रे मत कौन हूँ मैं
मत उठाओ उँगलियाँ अब
संख्यातीत क्षणों में
साँसें शिथिल हुई जाती हैं
क्षोभ नहीं पीड़ा ढोयी है

 

साँसें शिथिल हुई जाती हैं

साँस-साँस
गिन-गिन कर निरूपम
साँसें शिथिल हुई जाती हैं
एक बार भर आँख निहारो,
सारे जनम
यहीं हम जी लें

गंधवाहिनी बाँध न पाई
उपवन-उपवन मैं हो आई
जरा-मरण के
द्वारे केवल
गीतों की रह गई कमाई

पोर-पोर
पड़ गए फफोले
रिस-रिस रीत गई हूँ पूरी
एक बार यदि छू भर देते,
शत-शत जनम
यहीं हम जी लें

बचपन खिला पराए आँगन
यौवन के घर ली अँगड़ाई
रेखाएँ भूगोल
हो गई
खोज-खोज आँखें पथराईं

बिखर-बिखर
सब गए घरौंदे
सपने रेत-रेत हो आए
हाथ थाम लेते यदि पल भर
सारे करम
यहीं तय जी लें

२७ अगस्त २०१२

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