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अनुभूति में ओम धीरज की रचनाएँ-

गीतों में-
अलग-अलग दामों पर
कैसे कह दूँ
खबर बनाम बतकही
जन्म-दिवस बिटिया का
फेसबुक बनाम घर की खबर
साथी बोलो

  खबर बनाम बतकही

कितने बदले रूप खबर ने,
खुद को खबर नहीं,
पहुँच सातवें आसमान पर
सोचे ये 'बतकही'

दीवारों में कान उगे जब
दो से तीन हुए,
खबर बनी तो अच्छे-अच्छे
भी बे दीन हुए,
धोबी के तानों से सीता
बेघर हुई रही।

सुबह चाय की चुस्की के संग
कल तक स्वाद मिले,
रह-रहकर चेहरे फूलों-से
मुरझे और खिले,
पलट-पलट पन्ने थे पढ़ते
जैसे जोत बही।

अब तो तीस मिनट में दो सौ
खबरें क्या सोचें,
बोरे में भूसे-सा ठूँसे
मूसल से कोंचे,
नोचें सिर के बाल न समझे
कितना गलत सही।

८ दिसंबर २०१४

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