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अनुभूति में पंकज परिमल की रचनाएँ

अंजुमन में-
इक किताब
झोंका छुए कोई
तितलियाँ रख दे
नहीं होता
रूठ जाता है

गीतों में—
आज जहाँ रेतीले तट हैं 
आज लिखने दो मुझे कविता
इस जीवन में
काँटे गले धँसे
कागा कंकर चुन
जड़ का मान बढ़ा
जितना जितना मुस्काए
पत्र खोलो
रस से भेंट हुई
सपना सपना

नहीं होता

कहीं भी होता अगर मैं वहाँ नहीं होता
मिटाके हस्ती को अपनी धुआँ नहीं होता

न छूटती ये जमीं पाँवों से कभी अपने
खयालो-ख्वाब में गर आसमाँ नहीं होता

जहाँ भी रहता वहीं रौशनी ही करता है
किसी चराग का अपना मकाँ नहीं होता

जरूर आपकी गुस्ताखियाँ रही होंगी
बिना ही बात तो वो बदजुबाँ नही होता

न जाने कबसे कोई शोला पल रहा होगा
सुपुर्दे खाक योंही आशियाँ नहीं होता

खुशी की राह में रोड़ा न कोई अटकाता
जो कोई खैरख्वाह दरमियाँ नहीं होता

१ फरवरी २०२२

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