अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में प्रमोद कुमार सुमन की रचनाएँ-

गीतों में-
अर्थ-श्रम
दुर्दशा
पड़ोसी
प्रेरणा
धूप की स्वर्णिम किरण

अर्थ-श्रम

कल्पना में कुछ भी हो
व्यवहार में कुछ भी नहीं
दान में कुछ भी मिले
उपहार में कुछ भी नहीं।

पंचवर्षीय योजनाओं में
विचाराधीन था
अर्थ और श्रम की विषमता का
विषय प्राचीन था
योजनाएँ नित नई
करवट बदलती ही रहीं
शून्य ही निष्कर्ष है
वह दीन है जो दीन था

सान्त्वना ढेरों मिलीं
उपचार में कुछ भी नहीं।

देश के इन कर्णधारों से
निवेदन है यही
स्वार्थ-निज में कुछ कटौती
आत्म संशोधन कहीं
भर नहीं सकती है खाई
भाषणों की रेत से
कर्म के फौलाद से
इक सेतु बन जाए यहीं

एहसान में कुछ भी मिले
अधिकार में कुछ भी नहीं।

इस नए पथ से परस्पर
दान हो और मान हो
वास्तविक अस्तित्व के
मूल्यांकनों का ज्ञान हो
रक्त का अनुराग हो
निज-देश का अभिमान हो
अर्थ के आधार पर
नहीं कर्म का अपमान हो

प्रतिकार में कुछ भी मिले
उपकार में कुछ भी नहीं।

यत्न भी है प्रयत्न भी है
कुछ नहीं परिणाम है
हर किसी सिद्धान्त का
कुछ वाद है कुछ नाम है
क्या कभी सिद्धान्त-वादों में
कुछ सम आएगा
समाजवाद तो मान और
अपमान का संग्राम है।

इकरार में सब कुछ मिले
आभार में कुछ भी नहीं।

१ जून २०१६

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter