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अनुभूति में राजा अवस्थी की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अब नहीं होते हृदय के तार झंकृत
आलमशाह हुए
उम्र भर बढ़ता रहेगा
छितरी छाँव हुआ

पहले ही लील लिया

गीतों में-
आस के घर

कुछ तेरी कुछ मेरी
खेतों पर उन्नति के बादल
छाँव की नदी
झेल रहे है

मन बसंत टेरे
राम रतन
संबंधों के महल
सपनों का संसार
हृदय की सुकुमार काया

 

मन बसंत टेरे

मन बसंत टेरे
ठिठुरते रहे सबेरे

पतझर की अगवानी में
पाला की मार पड़ी
खेतों की अरहर सब उकठी
रोए खड़ी-खड़ी
बारिस बिन चौमास गया
पानी पाताल गया
बन्‍द पड़े कूपों में पम्‍पे
द्वारे खड़े अँधेरे

बन्‍धु मिठाईलाल
बचाएँ कब तक मीठापन
बौराए आमों से अबकी
आँधी की ठन-ठन
बागों में अमिया असमय
पतझर की तरह झरीं
नीचे बिछी सुगंध धरा पर
पेड़ खड़ा हेरे

फगुनहटा पी गया दूध
गेहूँ की बालों का
जाने क्‍या होगा
तलवों के दुखते छालों का
रामसखी का इस बसंत में
गौना ठहरा है
खेती के मत्‍थे क्‍या होगा
प्रश्‍न रहे घेरे

२३ जनवरी २०१२

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