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अनुभूति में रमाकांत की रचनाएँ-

गीतों में-
गाने दो
तेरी बातें कब होंगी
ये दूकाने हैं
शहर
सुबह सुबह अखबार

  शहर

दिक्कतों में है शहर
अब पत्थरों में है शहर

शहर को कुछ भी कहो
यह शहर बदलेगा नहीं
जिन्दगी मैली कुचैली
शहर अब लेगा नहीं
कुछ बड़ी ऊँचाई पर
उम्दा घरों में है शहर

सड़क पर चलते हुए
कुछ पड़ा मिलता है नहीं
हैं बहुत चीजें मगर
यह मन मचलता है नहीं
सैकड़ों बदचलन हैं
उन सैकड़ों में हैं शहर

शहर को झूठा कहो तो
गाँव कुछ शरमाएगा
शहर से सीखा हुआ ही
गाँव चलकर आएगा
गाँव खंडहर हो गए
उन खंडहरों में है शहर

१२ दिसंबर २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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