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अनुभूति में रमेश रंजक की रचनाएँ— 

गीतों में-
अब की यह बरस
ईमान की चिनगी
गगन भर प्रण
गीत-विहग उतरा
चुलबुली किरन
तीलियों का पुल
दिन अकेले के

संकलन में-
कचनार के दिन- वेणी कचनार की
वर्षा मंगल- बादल घिर आए

 

 

 

दिन अकेले के

देह पर गहरी खरोंचे मारते
ये दिन अकेले के
अब तुम्हारा दिया मौसम
क्या करें ले के ?

पँख पाकर उड़ गईं
वे पालतू शामें
रँग उतरी दीखती रातें
दोपहर का बोझ
इतना बढ़ गया है अब
याद ही आती नहीं—
वे बुने स्वेटर-सी गई बातें

धूप लौटा कर अँधेरे को
टाँग लेता हूँ जली दीवार पर
रोशनी का चित्र ले-दे के
टूटते तारे सरीखे
दूर पर जब पास के रिश्ते
अब नहीं महसूस होते हैं
धूप के धनवान दिन भी तो
बेसहारों के लिए
कंजूस होते हैं
समय मुझ को, मैं समय को
काटता हूँ साँस ले-ले के

३० जनवरी २०१२

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