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अनुभूति में राणा प्रताप सिंह की रचनाएँ -

अंजुमन में-
एक टूटे तार की
तुमने जब कुछ बात कही थी

बड़ी मेहनत से
मैं भीतर से
सुल्तान जो अपना है

गीतों में-
अनगढ़ मन
आई है वर्षा ऋतु
नया कोई गीत ले
रीत रही है प्रतिपल

 

आई है वर्षा ऋतु

आयी है वर्षा ऋतु ये बड़ी सुहानी है
मन-आँगन भर आया स्मृतियों का पानी है

कीचड से सने हाँथ
दादुर की थी जमात
टर टर टर टिप टिप टिप
आवाज़े दिवा रात
पूँछ को हिलाता जो
स्वयं को बचाता वो
भीग रहा शेरू भी
बारिश में मेरे साथ
छप्पर से झरने सा बहता जो पानी है
हाँथ में छड़ी थामे धमकाती नानी है

आँगन में भीग रहा
आम का ताज़ा अचार
बांध रहे चाचा जी
घर की टूटी दिवार
हमको भी दे दो छत
भीग रहे कव से हम
गौशाला में गउवें
करती रहती पुकार
खलिहानों में जब जब भर आता पानी है
दीख रही बाबा की चिंतित पेशानी है

अंचरे में भीग चली
प्रियतम की पाती है
तेल नहीं दिये में
सिर्फ बची बाती है
ऐसे में पुरवाई
मदमाती है आयी
बुझती बाती में जो
लौ सुलगा जाती है
पिछले मौसम की ही बरखा अनजानी है
ना जाने फिर से क्यूँ बरसा ये पानी है

२७ सितंबर २०१०

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