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अनुभूति में सत्यनारायण की रचनाएँ—

नए गीतों में-
अजब सभा है
मैंने हलो कहा
रौशनी के लिये

है धुआँ तो

गीतों में-
बच्चे जैसे कथा कहानी
बच्चे अक्सर चुप रहते हैं

 

  बच्चे अक्सर चुप रहते हैं

बच्चे
अक्सर चुप रहते हैं
कौन चुराकर ले जाता है
इनके होंठों की फुलझड़ियां
बिखरी बिखरी सी लगती क्यों
मानिक मोती की ये लड़ियां
इनकी डरी डरी आंखों में
किन दहशत के
नाम पते हैं?

जाने कहां गंवा आए ये
चपल चौकड़ी सोन हिरन की
घर आंगन से रूठ गई क्यों
नन्हीं थिरकन प्रात किरण की
गुमसुम गुमसुम से रहकर भी
हमसे बहुत–
बहुत कहते हैं


ये तह दर तह खुल जाएंगे
पास बिठाकर इनमें झांकें
इस संवेदनहीन समय में
इन पर कोई कलरव टांकें
तनिक चूम कर देखें कैसे
सात सुरों में
ये बजते हैं।

२४ दिसंबर २००५

 

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