अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सावित्री परमार की रचनाएँ-

गीतों में-
कहाँ गाँव कब शहर
खुलकर हँसे
बिखर गए दिन
लौट आएँ दिन
सूरज है बीमार

  सूरज है बीमार

सूरज है बीमार
रोशनी जख्मी है

हथियाने औकात
यहाँ पर होड़ लगी
कब तक देगी साथ
डोर है जोड़ लगी,

भीड़ खड़ी बेखबर
सड़क भी सहमी है

आलोचक हो उठी
हवाओं की आदत
गरम रेत में फँसी हुई
पाँवों की ताकत

पंख कटे रिश्ते
आँख हर वहमी है

शून्य बीतते दिन
चिंता बुनती रातें
मुर्दा सपने लिये
काँपती शंकित बातें

उम्र घाट पर हर दिन
उल्का जनमी है

१९ मई २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter