अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में शैलेन्द्र शर्मा की रचनाएँ-

गीतों में-
खुली फेसबुक हुई दोस्ती
दस रुपये की कठपुतली है
प्रेक्षारानी सुनो कहानी

बाज़ार है बाबा
रामजियावन बाँच रहे हैं

 

खुली फेसबुक हुई दोस्ती

खुली फेसबुक हुई दोस्ती
शीला-श्याम मिले
यौवन की दहलीज़ों पर थे
द्वार-अनंग खुले।

सोलह की शीला थी केवल
सत्रह के थे श्याम
इंटरनेट पर चैटिन्ग करना
मन-भावन था काम
सच कहते हैं दूर ढोल के
लगते बोल भले

धीरे-धीरे बढी गुटुर-गूँ
फिज़ा हुई मदमस्त
जाने-अनजाने समाज की
हुई वर्जना ध्वस्त
फिर उडान के पहले ही
पाँखी के पंख जले

आनर-किलिंग श्याम के हिस्से
शीला को एकान्त
और कोख में ही विप्लव को
किया गया फिर शान्त
अलग-अलग साँचे पीढ़ी के
किसमें कौन ढले

२२ सितंबर २०१४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter