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अनुभूति में शंभुनाथ सिंह की रचनाएँ-

गीतों में-
जीवन लय
देखेगा कौन
लोग

समय की शिला

 

देखेगा कौन

बगिया में नाचेगा मोर,
देखेगा कौन?
तुम बिन ओ मेरे चितचोर,
देखेगा कौन?

नदिया का यह नीला जल, रेतीला घाट,
झाऊ की झुरमुट के बीच, यह सूनी बाट,

रह-रह कर उठती हिलकोर,
देखेगा कौन?
आँखड़ियों से झरते लोर,
दे
खेगा कौन?

बौने ढाकों का यह वन, लपटों के फूल,
पगडंडी के उठते पाँव, रोकते बबूल,

बौराये आमों की ओर,
देखेगा कौन?
पाथर-सा ले हिया कठोर,
देखेगा कौन?

नाचती हुई फुल-सुँघनी, बनतीतर शोख,
घास पर सोन-चिरैया, डाल पर महोख,

मैना की यह पतली ठोर,
देखेगा कौन?
कलंगी वाले ये कठफोर,
देखेगा कौन?

आसमान की ऐंठन-सी धुएँ की लकीर,
ओर-छोर नापती हुई, जलती शहतीर,

छू-छूकर साँझ और भोर,
देखेगा कौन?
दुखती यह देह पोर-पोर,
देखेगा कौन?

१७ जनवरी २०११

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