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अनुभूति में शांति सुमन की रचनाएँ—

गीतों में—
एक प्यार सबकुछ
किसी ने देखा नहीं है
खुशी सुनहरे कल की
थोड़ी सी हंसी
धूप तितलियों वाले दिन
पानी बसंत पतझर
सच कहा तुमने

 

पानी, बसंत, पतझर

अरी ज़िंदगी पानी में तू
बना रही घर है
बाहर–बाहर है बसंत,
पर भीतर पतझर है।

जहाँ कहीं भी जली रोशनी
तुझको हुआ पता,
पर अपने टुकड़ों को कैसे
जोड़े तुम्हीं बता,
टूटी हुई छतों पर उड़ता
सपनों का पर है।

शब्द जोड़ते रहे–
गए ढहते ही सबके माने,
एक आग जलती ही रहती
सिरहाने–पैताने,
भीग रही वर्षा में कच्ची हँसी
बहुत बेघर है।

जड़ी हुई गहनों पर
भींगी आँखों की छापें,
इस जंगल में तेज़ हवा
तू कहाँ–कहाँ नापे,
इतना तो तय है कि तुम्हारा
उठा हुआ सिर है।

९ सितंबर २००६

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