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फूलों की घाटी में
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मन माँगे ठौर

गीतों में-
आसमान गुमसुम रहता है
एक टिमटिम लौ
कंप्यूटर रोबोट
ताँगे वाला घोड़ा
दूर अभी मंजिल है
रोटी से ऐटम-बम प्यारा
समय को नाथ!

 

एक टुकड़ा धूप

एक टुकडा़ धूप ने ही
अर्थ मुझको दे दिया

जागरण का भ्रम धरे मैं
दरअसल सोता रहा
गहरे अहं में डूब कर
क्या न क्या खोता रहा?
शेष है कितना समय
ओह मैने क्या किया

स्वप्न- सृष्टा चाँदनी के
मोह- पाशों से निकल
आज ही मैंने जिए हैं
दो पलाशी- पल असल
आज मैंने क्या गरल के
पात्र में अमृत पिया

१८ फरवरी २०१३

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