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अनुभूति में श्याम अंकुर की रचनाएँ -

गीतों में-
कौन दे गया
खेत जिगर का
चलती देखी
झेल रहा हूँ
रिश्तों के बीच
लोग यहाँ के
विश्वासों की चिड़िया
 

 

खेत जिगर का

खेत जिगर का -
आजकल,
कितना है सुनसान?

सपनों की सब
फ़सलें सूखी
लेकिन मन की इच्छा भूखी
आज लुटेरे -
लूट कर,
होते क्यूँ हैरान?

अब तक भी मैं
जान न पाया
कौन सगा है कौन पराया
कौन छीनता -
होठ की,
मुझसे नित मुस्कान?

कौन सुनेगा
कड़वी बातें
अपना करता हमसे घातें
कौन स्वार्थी -
है नहीं,
’अंकुर‘ अब इनसान?

१ सितंबर २००८

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