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अनुभूति में डॉ० त्रिमोहन 'तरल' की रचनाएँ-

गीतों में-
अश्क से भीगी निगाहें
इधर-उधर की
ओ नदी
क्यों अभी तक
मधुर मास के प्रथम पुष्प की

संगदिल शहर में
सब कहते हैं

  आशा गीत

परि‍पूर्णता तक बढने दो नवांकुरि‍त आशा को
होने दो परि‍वर्ति‍त जीवन अभि‍लाषा को

आस्‍था के सूरज को मन-तमस से उगने दो
शुप्‍त-सी मानवता को नव दि‍वस में जगने दो
छँटने दो जी भरकर दानवी कुहासा को
होने दो परि‍वर्ति‍त जीवन अभि‍लाषा को
परि‍पूर्णता तक बढने दो नवांकुरि‍त आशा को

आकांक्षा की नवलता में नवकलि‍का खि‍लने दो
नववधू-सी कोपलों को नवरस में मि‍लने दो
स्‍वमनस को गुनने दो प्रकृति‍ परि‍भाषा को
होने दो परि‍वर्ति‍त जीवन अभि‍लाषा को
परि‍पूर्णता तक बढने दो नवांकुरि‍त आशा को

मन-आँगन में छि‍पा उमंगों का स्‍वर्णमृग
रंग भरी हर दि‍शा है जहाँ जाए वि‍स्‍मृत दृग
बदले में पाने दो शांत-मन की भाषा को
होने दो परि‍वर्ति‍त जीवन अभि‍लाषा को
परि‍पूर्णता तक बढने दो नवांकुरि‍त आशा को

हरि‍त पीत वर्णो सावसंत स्‍वच्‍छंद वि‍चरे
धरा से अंबर तक नव-नव सी शोभा बि‍खरे
कुंठा से वि‍लग हो पनपायें प्रत्‍याशा को
होने दो परि‍वर्ति‍त जीवन अभि‍लाषा को
परि‍पूर्णता तक बढने दो नवांकुरि‍त आशा को

१८ जनवरी २०१०

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