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अनुभूति में डॉ० त्रिमोहन 'तरल' की रचनाएँ-

गीतों में-
अश्क से भीगी निगाहें
इधर-उधर की
ओ नदी
क्यों अभी तक
मधुर मास के प्रथम पुष्प की

संगदिल शहर में
सब कहते हैं

 

क्यों अभी तक

क्यों अभी तक समझ में ये आया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं
मेरी आहों -कराहों
को तुम ले गए
मेरी साँसों-उसासों
को तुम ले गए
मुझको मुझसे चुराया बताया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं

मेरी अभिधा हो तुम
व्यंजना हो तुम्हीं
मेरे मन-प्राण की
रंजना हो तुम्हीं
मैंने संकोचवश ये जताया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं

कुछ बताती है तो
कुछ छुपाती भी है
ये सुना है सखी
कुछ सताती भी है
तुमने मुझको अभी तक सताया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं

प्यार-तकरार भी
छोड़ पाता नहीं
तुमको हारा हुआ
देख पाता नहीं
इसलिए ख़ुद ही हारा हराया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं

तुम हो जीवन-हृदय
मैं हृदय का हृदय
तुम हो सूरज-किरण
मैं किरण का उदय
इस जगत को यही रास आया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं

तुम हो इक साधना
प्रार्थना, भक्ति हो
सुप्त मानव हो तुम
जागरण -शक्ति हो
कौन है जिसको तुमने जगाया नहीं
मैं तुम्हारा हूँ कोई पराया नहीं

१० मई २०१०

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