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                   अनुभूति में
                  
                  उमाकांत मालवीय 
                  की रचनाएँ- 
                  
                  एक चाय की चुस्की 
                  गुज़र गया एक और दिन  
                  झंडे रह जाएँगे, आदमी नहीं 
                  टहनी पर फूल जब खिला 
                  पल्लू की कोर दाब दाँत के तले  
                  फूल
                  नहीं बदले गुलदस्तों के 
                  
                  यह अँजोरे पाख की एकादशी  
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 यह अँजोरे पाख की एकादशी 
 
यह अँजोरे पाख की एकादशी  
दूध की धोयी, बिलोई-सी हँसी।  
गंधमाती हवा झुरुकी चैत की,  
अलस रसभीनी युवा मद की थकी  
लतर तरु की बाँह में,  
चाँदनी की छाँह में  
एक छवि मन में कहीं तिरछी फँसी  
गोल लहरें, जुन्हाई अँगिया कसी।  
हर बटोही को टिकोरे टोंकते,  
और टेसू, पथ अगोरे रोकते  
कमल खिलते ताल में,  
बसा कोई ख़याल में  
चंद्रमा, शृंगार का ज्यों आरसी,  
रात, जैसे प्यार के त्यौहार-सी।  
गुनगुनाती पाँत भँवरों की चली,  
लाज से दुहरी हुई जाती कली  
धना बैठी सोहती,  
बाट प्रिय की जोहती  
द्वार पर ज्यों सगुन बंदनवार-सी  
रस भिंगोयी सुघर द्वारा चार-सी  
24 अक्तूबर 2007 
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