अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में वीरेन्द्र आस्तिक की रचनाएँ-

गीतों में-
कैसे हैं चमत्कार
दूरी
बिखरे हिमखंड

वोटर उवाच

 

 

  वोटर उवाच

उस दर्पण को
रचा हमीं ने
उसमें अपना रूप
नहीं दिखता है

दर्पण, राजा है
दर्पणकार अपरिचित-सा परजा
दर्पण की शानो-शौकत पर
है अरबों का खर्चा
देखा?
अपनी ही संसद के
वह ग्रह-नक्षत्र
सँवारा करता है

दर्पण में
चलती रहती है
विकास की द्वन्द्व-कथा
ऐसे सब्ज-बाग हैं
जिनकी धरती का नहीं पता
इससे पहले तोष बहुत था
अब तो केवल
असंतोष उगता है

वोट अमृत है
इसको पीकर
अमर हो गया दर्पण
कोई तोड़े तो जी उठता है
हर टुकड़े में दर्पण
राहु-केतुओं का हर घर में
हर किरच-कोंण का
दंश दहकता है।

१५ मार्च २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter