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शरद महोत्सव हाइकु में

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सर्द मौसम
कविता भी सिकुड़ी
हाइकु बनी।

—अनूप कुमार शुक्ला
१० दिसंबर २००५

काँच दीवार
रेखाएं कुछ खींचीं
ओस लिखती।

—संध्या
११ दिसंबर २००५

लगता प्यारा
आंगन का अलाव
गुलाबी जाडा।

—हेमंत रिछारिया
१२ दिसंबर २००५

११

फटी रज़ाई
तकिया फ़ुटपाथ
सोता आदमी।

—मानोशी चैटर्जी
७ दिसंबर २००५

सर्दी ना गर्मी
जाड़े की दुपहरी
लगे सुहानी।

—जितेन्द्र दवे
८ दिसंबर २००५

पूस की ठंड
कांपे कोहरे बीच
थका सूरज।

—ईप्सा
९ दिसंबर २००५

कतारबद्ध
सर्दी से ठिठुरते
चीड़ के पेड़।

—प्रत्यक्षा
४ दिसंबर २००५

नदी ने ओढ़ा
कुहासे की रुई का
नया लिहाफ़।

—नलिनी कांत

५ दिसंबर २००५

सर्दी की भोर
बज रहे हैं घंट
घाटियां जागीं।

—लावण्या
६ दिसंबर २००५

बर्फ़ तकिया
कोहरे की चादर
सोई है घाटी।

—डा सुधा गुप्ता
१ दिसंबर २००५

धूप के पाँव
थके अनमने से
बैठे सहमें।

—डा जगदीश व्योम
२ दिसंबर २००५

पिघली बर्फ
बूँद बन के गिरी
दूब मुस्काई।

—रजनी भार्गव
३ दिसंबर २००५

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