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अनुभूति में मोहन कीर्ति की रचनाएँ-

हास्य व्यंग्य में-
कुत्ते की वफ़ादारी
मच्छर
शर्मा जी की अर्ज़ी

 

  मच्छर

एक छोटा-सा मच्छर
मेरी देह से
रक्तपान करता
झूम रहा था
घन-घन घनघन स्वर में
मानो शिव को दे रहा था चैलेंज
पुन: ताण्डव नृत्य के लिए
और किसी गायक को गायकी के लिए।
मुझे याद आया
पाण्डवों का वह लाक्षागृह
और झूमता
लाक्षागृह की देहरी पर
जलकर मरा पुरुवचन।
उसी सत्य को दुहराता मच्छर
इन्सानी खून से सराबोर
मेरे कान के पास
अभिमान से था गुन गुना रहा
कह रहा हो जैस
मुझे पीकर जीतना आता है
मुर्ख मानव।
पर उसे कहाँ था पता
कि एक ही चोट में
हो जाएगा विलीन
और रह जाएँगे हथेली पर
शोषित कुछ खून के धब्बे।

७ अप्रैल २००८
 

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