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छंदमुक्त में-
कविता
मिट्टी की महिमा
युद्ध

 

युद्ध

निहत्था बेसहरा मनुष्य
कहाँ तक लड़ सकता है शत्रु से
जबकि वह चहुं ओर से घिरा हो
खूंखार दानवों से
दानव जो दानव जैसे नहीं
भद्र मनुष्य की तरह लगते हों
निहत्था बेसहरा मनुष्य
उन पर विश्वास करता है
और धोखा खा जाता है
नेता कहते हैं
संघर्ष करो
आखिरी दम तक लड़ो
निष्ठावान बेसहारा मनुष्य
एक आखिरी कोशिश करता है
और धराशायी हो जाता है
अखबार में छपती है
सचित्र उसकी शौर्य गाथा
पेशेवर क्रांतिकारी लोग
अमर रहे के नारे लगाते हैं

१६ अप्रैल २००१

 

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