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अनुभूति में बागेश्री चक्रधर की रचनाएँ -

चुभन
तब और अब
बताती हूं
प्यार क्या है
मेहनत का नगीना

अपना जनतंत्र
लोकतंत्र की खातिर
कहेगी दुनिया
क्यों
एक सलाह


कैसे समझाऊं
उपेक्षा का क्षण
उल्लास के क्षण
क्यों है
क्या करेगा तू


कैसे पिता हो
अब न होगा

स्वर्णमृग
मकरंद ही ठीक है


संकलन में-
नया साल- शुभकामना

 

पाँच मुक्तक (२)

अपना जनतंत्र

या तो बाबा का फूँका हुआ मंत्र है,
कोई जादू है या फिर कोई तंत्र है,
कितने षड्यंत्र आफत झमेले हैं पर,
चल रहा फिर भी अपना ये जनतंत्र है।

लोकतंत्र की खातिर

प्यास के वास्ते सुराही है,
जुर्म के वास्ते सिपाही है,
टूटते लोकतंत्र की खातिर,
इक अदद पैन और सियाही है।

कहेगी दुनिया

नफ़रतें इस तरह की पालोगे,
क्रोध को इस तरह निकालोगे,
आत्महंता ही कहेगी दुनिया,
गर न खुद को अभी सँभालोगे।

क्यों

साथ हैं, साजो सामान सब सज गया,
पर लगे, मन तेरा, तन तेरा तज गया,
दिन हो या रात हो, बस तेरा साथ हो,
क्यों घड़ी देखता है कि क्या बज गया?

एक सलाह

मैंने बतलाया था, तुमने माना नहीं,
अब सुनूँगी मैं कोई बहाना नहीं,
कुछ उठाने की खातिर झुके, ठीक है,
पर कलम अपनी नीचे गिराना नहीं।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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