अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अभिनव कुमार सौरभ की रचनाए

छंदमुक्त में-
दो क्षणिकाएँ
ए री प्रीतम
जाने कितनी कोशिशें की

  ए री प्रीतम

ए री प्रीतम
कहाँ है तू
भीड़ तो बहती है बहुत आस–पास,
क्यों कोई नहीं बुझाता ये प्यास
गर, तेरे दिल से कोई,
टाँक देता मेरे दिल के धागे
गर, तेरी गोद में,
ठुँकी होती मेरे अरमानों की अकेली कील
गर, मेरी सोच,
तेरी धड़कनों से टकराई होती
गर, धुएँ की एक लकीर न खींची होती,
और तू उस पार न खड़ी होती
गर, उड़ा न ले जाती हवा,
धुएँ से बनी तेरी तस्वीर
गर, न घुले होते,
दिल के बुरादे हर गहरे कश में
क्यों सिहर उठती हूँ,
ये सोच कर,
चुक जाएगा दिल तेरे इश्क की चाक पर
ए री प्रीतम
कहाँ है तू

२४ दिसंबर २००४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter