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अनुभूति में अंबिका भट्ट की कविताएँ-

क्यों हर वक्त
आधा सा अँधेरा
वक्त को

 

आधा सा अँधेरा

तुम देख लो अगर हमें
इस समय इस जगह
शायद समझ सको
कुछ ज्यादा
इस आधे से अंधेरे में
खोजते हैं अपने आप को
कुछ है
जो जानते नहीं हम
अपने बारे में
कुछ है जो यह आधी सी रोशनी
आधा सा अँधेरा
बता रहा है

क्या समझ सकेंगे
इस अंजान भाषा को?
क्या जान पायेंगे
क्या छुपा है
इन आँखों के पीछे
नींद है आँखों में
कुछ ख्वाब हैं
कुछ खोये हुए से
गुमनाम आँसू भी हैं
कुछ दर्द
अनकहा-सा
छलकता है कभी-कभी
ढूँढता है तुम्हें

पर तुम मिलते नहीं
अनजान हैं अपने आप से
अब तक
जान पायेंगे कुछ
तो आयेंगे तुम्हारे पास
जानना चाहोगे
क्या है इन आँखों के पीछे
किसी रोज
चुपचाप
देखना मुझे
इस आधे से अँधेरे में

१५ दिसंबर २०११

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