मौत का पैमाना
यूँ हीं रस्ते में जाते हुए
जब किसी का जनाज़ा देखा
तो लगा जैसे मैंने खुली आँखों से
अपनी ही मौत का पैमाना देखा!
क्यों आये हैं हम इस दुनिया में?
ना जाना कभी उस हक़ीक़त को
पहचान ले खुद को है कहाँ भरोसा ज़िन्दगी का
ना जाने कब यमराज आकर कह दें बस
अब संग मेरे चलो!
मिल जाना है इक दिन सब मिट्टी में
हुआ यकीन जब उसको चार काँधों पर देखा
तो लगा जैसे मैंने खुली आँखों से
अपनी ही मौत का पैमाना देखा!
गँवा दिया वक़्त का हर पहलू
क्यूँ सिर्फ उँगली उठाने में
क्यूँ नहीं की सिर्फ इक कोशिश
हकीक़त अपनी पहचानने में!
बन गया अब बचपन इक किस्सा
घूमा कुछ यूँ जब वक़्त का चरखा
तो लगा जैसे मैंने खुली आँखों से
अपनी ही मौत का पैमाना देखा!
११ जून २०१२
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