अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में मनीष जैन की रचनाएँ

छंदमुक्त में—
कविता वास्तविकता

तुकांत में-
प्यारे नाना जी
 

 

कविता–वास्तविकता

बीहड़ बियाबनों में
अठखेलियाँ करता
एक शख्स
आ पहुँचा
सफेदपोशों की
स्याह बस्ती में
जहाँ­
जड़ हो चुकी
संस्कृति ।
दम तोड़ चुकी
मानवता ।

पाश्चात्यीकरण की
भागमभाग देख
वो घबराया
अकुलाया।
दम घुटने लगा था
उसका ।
इस कलुषित फिजा में।

वह दौडा
अपने अतीत
अपने
जंगलों-पहाड़ों
झरनों की तरफ ।
सोचकर कि
कितना अपनापन
कैसा आनन्द ?
और सुकून था
उन बीहड़ों में ।

९ अप्रैल २००५

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter