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अनुभूति में राजीव कुमार श्रीवास्तव
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स्मृतियाँ

मानस के केन्द्र में अंकित
कस्तूरी सदृश तुम्हारा व्यक्तित्व
जिसकी तलाश में
दर दर भटकता रहा मैं
अबोध मृग की भांति
किन्तु आज उसे
आत्मसात कर पा रहा हूँ
जब तुम नहीं हो
सच
तुमसे दूर होकर ही
ज्यादा महसूस किया है तुम्हें मैंने
कब मुझमें जज्ब हो गये तुम
पता ही न चला
और आज
इन कल्पनातीत क्षणों की
उपस्थिति की प्रतिक्रिया
अंतर्मन में व्याप्त
ये शून्य
जिसके गहराई में डूबने के सिवा
कोई विकल्प नहीं मेरे पास
अब तो बस
इस नीरस और बदरंग जीवन के
पथरीले रास्तों में
घिसटता हुआ
तुम्हारी अनुपस्थिति में अपूर्ण
अपने व्यक्तित्व को ही
लहूलुहान कर रहा हूँ
इस प्रतीक्षा के साथ
कि कभी मैं तुममें
समाहित होऊँगा
शेष
स्मृतियाँ...

२४ अप्रैल २००३

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