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अनुभूति में संजय पाल शेफर्ड की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
असीम यंत्रणाएँ
प्रकृति की गोद
स्वप्न जो जिंदा हैं
स्वप्निल प्रेम
सूखे हुए होंठ

 

सूखे हुए होंठ

सूखे हुए होंठो पर
बूँद भर पानी
ऐसा लग रहा है
चाँद ने झुककर
तपते हुए
रेगिस्तान के
जलते हुए होंठों पर
होंठ रखकर
चूम लिया हो
तुम्हें छूकर
आज फिर से
मैं तृप्त हो गया।

२ सितंबर २०१३

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