अनुभूति में संजय पाल शेफर्ड की रचनाएँ
छंदमुक्त में- असीम यंत्रणाएँ प्रकृति की गोद स्वप्न जो जिंदा हैं स्वप्निल प्रेम सूखे हुए होंठ
सूखे हुए होंठ सूखे हुए होंठो पर बूँद भर पानी ऐसा लग रहा है चाँद ने झुककर तपते हुए रेगिस्तान के जलते हुए होंठों पर होंठ रखकर चूम लिया हो तुम्हें छूकर आज फिर से मैं तृप्त हो गया।
२ सितंबर २०१३
इस रचना पर अपने विचार लिखें दूसरों के विचार पढ़ें
अंजुमन। उपहार। काव्य चर्चा। काव्य संगम। किशोर कोना। गौरव ग्राम। गौरवग्रंथ। दोहे। रचनाएँ भेजें नई हवा। पाठकनामा। पुराने अंक। संकलन। हाइकु। हास्य व्यंग्य। क्षणिकाएँ। दिशांतर। समस्यापूर्ति
© सर्वाधिकार सुरक्षित अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है