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अनुभूति में सत्येन्द्र कुमार अग्रवाल की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आँसू
न जाने वह कौन है
रुक जाओ अब इनसान

 

रुक जाओ अब इंसान

धरती आसमान है स्वयं है तुम्हारे भगवान
हवा पानी ही है उसकी तुमको देन
फिर किस बात का तुमको ध्यान
करो अब तुम पंचतत्व का सम्मान
ये धरोहर है भगवान की
और एक ज़िम्मेदारी तुम्हारी
फिर क्यों करते हो दूसरे की आस
करो अब स्वयं एक प्रयास
तुम भी हो जीव इस धारा के
ग्राहक धरती, आसमान, पानी और हवा के
इनकी कमी तुम्हे भी कभी खलेगी
और तुम्हारे बच्चों को पछताएगी
ये मानव जीवन एक देन है भगवान की
ज़िम्मेदारी है धरती के अंदर छिपे इंसान की
समझो आज इस समस्या को और देखो
खिंचते आसमान
सिकुड़ाती ज़मीन और
जलती हवा को
ये तुम्हारे चेहरे की चमक और दिल की धड़कन
न छीन ले
समझो अपने अंदर छिपे इंसान को
रुक जाओ अब ए इंसान
कर रहे पुकार स्वयं धरती और आसमान
रुक जाओ ऐ इंसान

२६ अक्तूबर २००९

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