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अनुभूति में सुदीप शुक्ल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
छवि
ग्राम चैतन्य
 

 

ग्राम चैतन्य

गाँव के विहार में गंगा कछार में
प्रकृति का अनुपम अद्भुत सौंदर्य दिखा
अंतस की पीड़ा का आत्मिक आनंद से
भाव के प्रवाह में, रोमांचक द्वंद्व दिखा
गेहूँ बालियों का, रोटी की थालियों से
भेद को मिटाने का, निर्मल सौगंध दिखा
हरे खेत हरी दूब, दाने संग घास खूब
प्रेम का जयघोष यहाँ, हर्षित मकरंद दिखा
पुरवइया वायु चली, बसंत की बहार चली
फागुन की फुहार में जोश भी स्वच्छंद दिखा
हाथों की श्रम शक्ति पत्रों की मातृभक्ति
ममता से शौर्य के विकास का हेमंत दिखा
पुष्पों के पल्लव में, खग मृग के कलरव में
भौंरे की गुनगुन में, बंधित प्रतिबंध दिखा
तरंग में उमंग थी, किसलय में कंपन था
नाव के विस्पंद में, ओज का प्रस्पंद दिखा
सिक्के के दो पट हैं, नदिया के दो घट हैं
जन मन में सुख दुख का, रोचक संग्राम दिखा
छोटे हर्ष छोटे क्लेश, गाय लेरूआ भैंस मेश
पंच है भगवान यहाँ, संग में सत्संग दिखा
अज्ञान का साम्राज्य था, विज्ञान का संताप था
पंडित सर्वज्ञा व्यंग्य, कह झाँकता वो कंद दिखा
न्याय था झुका-झुका, रक्षक था भूखा-भूखा
दानवों के पाश में, बंदी गंधर्व दिखा।
पश्चगामी रूढ़ियाँ थीं, क्षय होती पीढ़ियाँ थीं
विकास के विचार का, टूटता प्रत्यंग दिखा
उंच नीच जात पात, वर्ग भेद साथ साथ
मनव से मानव का, अंतर मतिभंग दिखा
बचपन से काम काज, डूबते हुए जहाज
खेतों में शिशुओं को, देखता मैं दंग दिखा
सर्दी में गर्मी में, रात में बरसात में
आपात से विकास हेतु, करता वह जंग दिखा
जंग है शबाब पर, अंग हैं रूआब पर
तस्वीर को बदलने को, बद्ध नीलकंठ दिखा
दुख है संतोष पर, निष्ठा जयघोष पर
सूर्य की उन रश्मियों में, स्वप्न संचार दिखा
राष्ट्र का प्रतिबिंब दिखा, त्रिरंग का ध्वज दंड दिखा
वेद का विस्तार दिखा, माँ का अनुप्राण दिखा।
गाँव में जब संघ दिखा, असुर स्वप्न भंग दिखा।
एकता की डोर दिखी, राष्ट्रभक्ति मंत्र दिखा।

९ मार्च २००५

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