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स्वदेश

माँ ने बताया मेरा जन्म वर्ष सन १९५१ में हुआ था और उस समय मैं रो रहा था? बाद में हँसना भी आ गया। हँसते रोते जिन्दगी के ५० वर्ष पूरे हो गये हैं।

अपनी जन्मस्थली प्रयाग से मुझे अत्यंत प्यार है। मेरी शिक्षा दीक्षा भी यहीं हुयी। अब यहीं कार्यरत भी हूँ। शिक्षा और पेशे से इंजीनियर हूँ लेकिन दिल और शौक से कवि। कविता बचपन से ही लिखने लगा था। उस समय शायद तुकबंदी ज्यादा और कविता कम होती थी। लेकिन धीरे धीरे कविता एक माध्यम बनने लगी अपनी बात कहने का? अपने अनुभवों और खयालों को दूसरों तक पहुँचाने का और दिल के दर्द और खुशी को जाहिर करने का। अब कविता लिखना मजबूरी भी है और खुशी का कारण भी।

कविता लिखने की प्रेरणा आस पास होने वाली घटनाओं, जीवन की खठ्ठी मीठ्ठी यादों, लोगों से रिश्तों या फिर किसी विषय पर गंभीर चिंतन से मिलती है। कभी तो सोचकर कि कविता लिखना है लिखता हूँ पर अकसर कविता यों ही अपने आप लिख जाती है। किसी ने कहा है कि प्यार की हल्की और मधुर झोंकों में हर कोई कवि हो जाता है ।

मुझे ऐसा लगता है कि जैसे जिन्दगी एक सफर है वैसे ही शायद कविता लिखना भी एक सफर है। इसमें कई पड़ाव तो आते हैं लेकिन मंजिल नही मिलती। फिलहाल सफर जारी है।

 

अनुभूति में स्वदेश की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-

मंजिलें
हमसफर
अमर हो जाए

 

 

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