अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

मेरा भारत
 विश्वजाल पर देश-भक्ति की कविताओं का संकलन

 

भाल पे मुकुट हिमगिर (घनाक्षरी)

भाल पे मुकुट हिमगिर जैसा पहना है,
जो कि सब वैरियोँ के दम्भ को उखाडता,
राम और कृष्ण ने चुना था जिसे जन्मभूमि,
पावन धरा को हर देवता निहारता।
बार-बार अंजलि मेँ ज्वार और भाटा डाल,
हिन्द महासागर है चरण पखारता,
विश्वगुरु बन कर भारत है सर्वश्रेष्ठ,
जिसकी समूचा विश्व आरती उतारता।

गंगा-यमुना की धारा आँचल बना के ओढी,
जो कि माता भारती के रूप को निखारती,
कल-कल स्वर कर दौडतीँ हैँ अविरल,
भारती के स्यामल शरीर को सँवारती।
पुरवाई की बयार लेकर बहार आती,
अंग-अंग भारती का वेग से बुहारती,
जिसने है ध्रुव-एकलव्य को जनम दिया,
ऐसी मात भारती की बार-बार आरती।

बिस्मिल भगत व आजाद जैसे बेटे दिए,
जिनका कि साहस अदम्य मानता हूँ मैँ,
लाल बाल पाल जैसे प्रेरणा के स्रोत मिले,
अशफाक टीपू को प्रणम्य मानता हूँ मैँ।
लेखनी से लिखे हैँ अंगार यहाँ कवियों ने,
'मेघ' को तो ऐसे मेँ नगण्य मानता हूँ मैँ,
भारत का बेटा कहलाने का जो हक पाया,
खुद को अनन्य कोटि धन्य मानता हूँ मैँ।

मेघश्याम मेघ
१३ अगस्त २०१२


इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter