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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
जनतंत्र जाग
 

सेवा सद्दश्य बलिदान नहीं
राष्ट्र भक्ति सा अभिदान नहीं
जन पर्व गाये प्रयाण राग
जनतंत्र जाग जनतंत्र जाग

संसद की ना गरिमा खोएँ
ना लाज शर्म अखियाँ ढोयें
वह वृक्ष पल्लवित हो पाएँ
जो बीज शहीदों ने बोये

निंद्रा आलस्य करके त्याग
जनतंत्र जाग, जनतंत्र जाग

कोटिशः जनों के यह प्रतिनिधि
बस अभिनय में पारंगत है
स्वहित के आगे जनहित कहीं
हो गौण, हुआ अस्तगत है

भय है तुम पर ना लगे दाग
जनतंत्र जाग, जनतंत्र जाग

सम्मुख अब देश प्रथम होगा
यह शपथ, सोच हृदयस्थ करें
जो हानि देश को पहुँचाए
हर ऐसी शह हम ध्वस्त करें

तम छँटे जले हर घर चिराग
जनतंत्र जाग जनतंत्र जाग

- ओम प्रकाश नौटियाल
१० अगस्त २०१५


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