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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
आज पंद्रह अगस्त है
 

उठो उठो श्रीमान
आज पंद्रह अगस्त है

सरसठ की हो गई
आज बूढ़ी आज़ादी
सोई चद्दर तान
दिखे पूरी आबादी

सीमाओं पर लगातार
मिलती शिकस्त है

अंदर-बाहर सभी तरफ
ख़तरा ही ख़तरा
पानी सा हो गया
लहू का कतरा-कतरा

लालकिले वाला वक्ता
भी दिखे पस्त है

लूट रहे वो जिन्हें
आपने चुनकर भेजा
देख देश की दशा
फटा जा रहा कलेजा

नौजवान अपनी दुनिया में
हुआ मस्त है

भले रुलाए प्याज
खून के हमको आँसू
लिखे जा रहे उन्नति के
नारे नित धाँसू

कहाँ शिकायत करें
हवा भी हुई भ्रष्ट है

- ओमप्रकाश तिवारी
१० अगस्त २०१५


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