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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
जन्मभूमि वंदना
 

हे जन्मभूमि शत्‌ शत्‌ नमन
हे मातृभूमि शत्‌ शत्‌ नमन

देश के प्रहरी बनें
रणबाँकुरे केहरि बनें
दुष्ट दुश्मन के इरादे
चूर क्षण भर में करें

आशीष दो रक्षासमर हित
हो सहर्ष अपना गमन
हे जन्मभूमि !
शत्‌ शत्‌ नमन

नित तेरी सुषमा सँवारे
हम हरित परिधान से
विश्व निज समृद्धि आँके
तेरे ही उपमान से

नित चमन सुरभित रहे और
हो वतन में सुख अमन
हे जन्मभूमि !
शत्‌ शत्‌ नमन

जन्मभू नित वन्दनीया
मातु जय जय हो सदा
तेरी माटी पर निछावर
विश्व की सब सम्पदा

जनम लें जब जब
मिले ये ही धरा ये ही गगन
हे जन्मभूमि !
शत्‌ शत्‌ नमन

- पल्लव  
१० अगस्त २०१५


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