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जनतंत्र हमारा 
 जनतंत्र को समर्पित कविताओं का संकलन 

 
 
सोने के पन्नों में
 

सोने के पन्नों में फिर से,
इतिहास रचाओ तो जानें
जल रही धार गंगा जमुनी
ये आग बुझाओ तो जानें

जहरीली आज फिज़ाएँ हैं
नफरत की तीर हवाएँ हैं
मौसम है लहू की वर्षा का
मधुमास मनाओ तो जानें

भूखों की तड़पती है काया
महलों में मटकती है माया
रोटियाँ छीनकर खड़ी हुई
कोठियाँ गिराओ तो जानें

अपने हो रहे पराये हैं
छल औ' फरेब भरमाये हैं
भाई-भाई के आँगन की
दीवार गिराओ तो जानें

बदले हुए वेश शिकारी हैं
बाहों में छिपी कटारी हैं
बेपर है सोने की चिड़िया
ये बाज भगाओ तो जानें

- उमा प्रसाद लोधी
१० अगस्त २०१५


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